नक्सलियों की हैवानियत के आगे इस मासूम प्रेम कहानी ने दम तोड़ दिया

कमलेश ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, इस उम्मीद के साथ कि प्रशासन ज़रीना को मुझसे मिलवा देगी और हम लोगों की शादी हो जाएगी। हालांकि प्रशासन ने दोनों को मिलाने के लिए पूरी कोशिश की। लेकिन कमलेश के सरेंडर करने के बाद ज़रीना पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।

Love Story

नक्सल कमांडर कमलेश और ज़रीना की लव स्टोरी (Love Story) बड़ी त्रासद है। दोनों ने कच्ची उम्र में क्रांति की उम्मीद में नक्सल संगठन का दामन थामा था। कमलेश दक्षिणी बस्तर का एरिया सेक्रेटेरी था। ज़रीना, कमलेश के अंडर में काम करती थी। साथ रहते-रहते दोनों की एक दूसरे के बारे में समझ बढ़ने लगी। फिर पता ही नहीं चला कि कब दोनों एक दूसरे के इश्क में गिरफ्तार हो गए। अब भला इनका इश्क छिपाए कहां छिपने वाला था। बात जब फैलने लगी तो इन पर संगठन की तरफ से तमाम तरह की बंदिशें लगा दी गईं।

प्यार पर लगे पहरों का इन पर कोई खास असर नहीं हुआ और इन्होंने किसी की परवाह किए बिना शादी करने की ठान ली। अब मुश्किल ये कि नक्सल संगठन में प्यार, शादी, घर-परिवार इन सब की सख्त मनाही है। इसलिए हमेशा से नक्सल संगठनों में प्यार पर सख़्त पहरा रहता है। दरअसल, नक्सलियों की ताकत ही है नफरत। उन्हें हमेशा इस बात का डर रहता है कि अगर प्यार हावी हुआ तो उनका तथाकथित आंदोलन कमजोर पड़ जाएगा।

ज़रीना और कमलेश यह सब जानते हुए भी शादी का फैसला कर चुके थे। लिहाजा, दोनों ने संगठन के शीर्ष पद पर बैठे लोगों से शादी करने की बात कही। पर उनके आकाओं ने शादी करने की इजाजत नहीं दी। उलटा इन्हें समझाने-बुझाने की कोशिश की ताकि ये अपने फैसले को बदल सकें। लेकिन ये दोनों अपनी जिद पर अड़े रहे। जंगल में इतने सालों तक अपने आकाओं के इशारे पर खून-खराबा करने वाले ज़रीना और कमलेश को समझ आ गया था कि नक्सली रहते हुए शादी के सपने को हकीकत में नहीं बदला जा सकता। अगर लड़-झगड़ कर शादी कर भी ली तो ये उन्हें चैन से जीने नहीं देंगे।

अपनी मोहब्बत को शादी के अंजाम तक पहुंचाने के लिए दोनों किसी भी हद से गुजरने के लिए तैयार थे। ऐसे में इन्होंने तय किया कि सरेंडर करके मुख्यधारा में लौट चलते हैं। फिर जंगल से बाहर ही अपने सपनों की दुनिया बसाएंगे। उधर, इनके आकाओं को भी इसकी भनक लग चुकी थी। उन्होंने इन पर सख्त पहरे बिठा रखे थे। दोनों का मिलना-जुलना भी करीब-करीब बंद हो चुका था। ऐसे में दोनों का एक साथ जंगल से भाग कर पुलिस को सरेंडर करना असंभव सा लग रहा था। दोनों ने तय किया कि पहले कमलेश पुलिस के सामने सरेंडर करेगा और फिर वो ज़रीना को नक्सलियों के चंगुल से छुड़ाने के लिए प्रशासन से मदद मांगेगा।

तय रणनीति के हिसाब से एक दिन मौका पाकर कमलेश जंगल से भाग निकला और पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। उसे यकीन था कि प्रशासन उसे उसकी मोहब्बत ज़रीना से मिलाने में जरूर मदद करेगा। उधर, कमलेश के सरेंडर करने के बाद तो जैसे ज़रीना नक्सलियों के निशाने पर आ गई। उसे तरह-तरह से तंग किया जाने लगा। उस पर निगरानी बढ़ा दी गई। हर नक्सल ऑपरेशन में उसे आगे रखना शुरू कर दिया। ज़रीना बार-बार इन ऑपरेशन्स का हिस्सा बनने से इनकार करती, हथियार उठाने से मना करती, लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं थी।

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इधर, एक तरफ जहां सुरक्षाबल उसे ढूंढ कर उसे बाहर निकालने की कोशिश में जुटे थे। वहीं दूसरी तरफ बड़े नक्सली ज़रीना को हमेशा इधर-उधर भेजते रहे। कभी किसी इलाके में तो कभी किसी और इलाके में। उन्हें भी इसका इल्म हो गया था कि ज़रीना को उनके चंगुल से निकालने की कोशिश चल रही है और इंसानियत को नकार चुके नक्सलियों को ये हरगिज गंवारा नहीं था। उन्हें पता था कि अगर एक ज़रीना छूटी तो फिर वो नजीर बन जाएगी। और क्रांति के नाम पर चलने वाला उनका लूटपाट और अत्याचार का धंधा मंदा पड़ जाएगा।

जंगल से बाहर कमलेश दिन रात भाग-दौड़ करता रहा पर ज़रीना को बाहर निकाल पाने की जुगत नहीं बन पा रही थी। वह लगातार पुलिस और प्रशासन के संपर्क में बना रहा ताकि जैसे ही मौका मिले ज़रीना को नक्सलियों की कैद से छुड़ाया जा सके। पुलिस ने भी ज़रीना को बाहर निकालने के लिए सारे जतन कर लिए। पर सालभर गुजर जाने के बाद भी उसका कोई स्पष्ट ठौर-ठिकाना नहीं पता चल सका।

इसी बीच बस्तर के बीजापुर में पुलिस और नक्सलियों की मुठभेड़ हो गई। हर बार की तरह इस बार भी नक्सलियों ने ज़रीना को जबरन फ्रंटियर बनाया हुआ था। लिहाजा, मुठभेड़ में ज़रीना पुलिस की गोली का शिकार हो गई। उस रोज़ सिर्फ ज़रीना ने दम नहीं तोड़ा था बल्कि कमलेश और उसकी बरसों की मुहब्बत और दोबारा मिल पाने की हसरत ने भी दम तोड़ दिया। जिस फसाने को सुखद अंत देना चाहते थे उसका पटाक्षेप दुखांत हो गया।

ज़रीना के एंकाउंटर के बाद आईजी कल्लूरी ने बताया कि नक्सली संगठन महिलाओं को हमेशा सुरक्षा कवच की तरह इस्तेमाल करते हैं। हमेशा इनको आगे कर देते हैं ताकि वे खुद बच जाएं। नक्सली दरअसल डरपोक क़िस्म के होते हैं जो महिलाओं का सिर्फ़ शोषण करना जानते हैं। ज़रीना और कमलेश की कहानी उन युवाओं के लिए एक बड़ा सबक है जो क्रांति के नाम पर हथियार उठाने को बेताब रहते हैं। उन्हें ये समझ जाना चाहिए कि दशकों पहले क्रांति की राह से भटक चुके नक्सल संगठन अब सिर्फ लूट-पाट और अत्याचार का ठिकाना भर बन कर रह गए हैं। जहां, इसांनियत के लिए कोई जगह नहीं बची है।

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