इस पूर्व नक्सली ने पेरियार नदी को बचाने के लिए अपनी ज़िंदगी खपा दी, बन गया रिवर वॉरियर

कुछ दशक पहले जो एक नक्सलवादी था आज वह रिवर-वॉरियर है। इस नदी को बचाने की खातिर इन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी लगा दी।

kunjappan - thr river warrior

कुंजप्पन

पेरियार केरल की सबसे लंबी नदी है। यह आर्थिक दृष्टि से भी केरल की सबसे महत्वपूर्ण नदी है। 40 लाख से भी अधिक घरों में लोग इस नदी का पानी पीते हैं और 22,000 से भी अधिक मछुआरों के परिवार इस पर आश्रित हैं। पेरियार नदी के किनारे लगभग 280 से भी अधिक कारखाने लगे हुए हैं। इन कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ नदी में बहा दिए जाते हैं। जिसकी वजह से आज यह नदी बहुत प्रदूषित हो चुकी है। प्रदूषण के चलते केवल 2017 में ही नदी का रंग 10 बार बदला था। प्रदूषकों की वजह से नदी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो गई है, जिससे नदी में रहने वाली मछलियां लगातार मर रही हैं। पेरियार में पाई जाने वाली बड़ी मछलियों की कई प्रजातियां अब विलुप्त हो चुकी हैं। साथ ही इसका बुरा असर वहां रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है।

ये बातें जिंदगी के 7वें दशक में पहुंच चुके एमके कुंजप्पन को बहुत तकलीफदेह लगती हैं। यही वजह है कि उन्होंने पेरियार नदी को प्रदूषण से मुक्त कराने को ही अपनी जिंदगी का लक्ष्य बना लिया है। बचपन को याद करते हुए कुंजप्पन बताते हैं, “हमारे घर हर रोज़ दोपहर के खाने के लिए चावल के साथ मछली बनती थी। हमने शायद ही कभी कोई सब्जी बनाई हो। मां चावल बनातीं और फिर नदी को जातीं। वह मिनटों में मछलियां लेकर वापस आ जातीं। यह हमारी दिनचर्या थी। मुझे एक भी दिन याद नहीं जब हमारे यहां मछली न बनी हो। मेरी मां को मछली पकड़ने में कभी भी एक या दो मिनट से ज्यादा समय नहीं लगा। उस समय इस नदी में बहुत मछलियाँ होती थीं। पर आज सारी मछलियां खत्म हो गई हैं।” अनुसूचित-जनजाति से होने की वजह से बचपन में उन्हें छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियों का भी सामना करना पड़ा।

1970 के दशक में कुंजप्पन ने एलोर में Kerala Sasthra Sahithya Parishad (a people’s science movement in Kerala) की स्थापना की। तब कुंजप्पन केरल में नक्सली आंदोलन का हिस्सा थे। कुंजप्पन को आपातकाल में छिप कर रहना पड़ा। 1975 में उन्हें एक हत्या के आरोप में जेल भी जाना पड़ा। उन्होंने 7 साल जेल में बिताए। उस दौरान उनके परिवार ने जीवन यापन के लिए बहुत संघर्ष किया।

जेल से लौटने के बाद कुंजप्पन ने एलोर आंदोलन में फिर से वापसी की। उनका जीवन आंदोलनों से भरा हुआ था। कभी जातिवाद के खिलाफ तो कभी समानता, भोजन, कपड़ों और नौकरियों के लिए और कभी पर्यावरण के लिए आंदोलन। कुंजप्पन ने पेरियार नदी में हो रहे बदलाव को नोटिस किया। उन्हें लगा नदी में कुछ तो बदल रहा है। नदी के साथ-साथ पर्यावरण में भी कुछ बदलाव आ रहे हैं, जो ठीक नहीं है।

जब कुंजप्पन ने पेरियार को बचाने के लिए अपने आंदोलन में पहला कदम रखा तो वे एलोर जंक्शन पर हाथ में एक तख्ती लेकर खड़े हो जाते थे, जिस पर लिखा होता था, “वेलकम टू एलोर गैस चेंबर।” तब लोगों को लगता कि वह पागल हो गए हैं। उस वक्त कुंजप्पन को भी नहीं पता  था कि 30 साल बाद एलोर को भारत में तीसरा सबसे विषैला हॉटस्पॉट घोषित किया जाएगा। पर धीरे-धीरे लोग उनकी बात समझने लगे। 1990 के दशक तक कुंजप्पन को पेरियार आंदोलन के लिए लोगों का समर्थन मिलने लगा।

2003 के ग्रीनपीस अध्ययन के मुताबिक एलोर दुनिया भर के विषैले हॉटस्पॉट की सूची में 35 वें स्थान पर था। तब तक तो कुंजप्पन एक स्थानीय-नायक बन गए थे। अब जब भी वह एलोर की सड़कों पर साइकिल से निकलते हैं तो लोग उनके पास जाते हैं। उन्हें कुंजप्पन चेटन (भाई) कहते हुए मुस्कुराते हैं और बड़े सम्मान के साथ उनसे बात करते हैं। बाद में लोगों ने उन्हें एलोर नगरपालिका के वार्ड सदस्य के रूप में भी चुना।

कुछ दशक पहले जो एक नक्सलवादी था आज वह रिवर-वॉरियर है। कुंजप्पन ने अपनी प्रिय नदी पेरियार को बचाने के लिए नक्सलवाद का रास्ता छोड़ दिया। 25 साल से अधिक समय से वह इस नदी को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। पेरियार को बचाने का उनका संकल्प आज भी उतना ही मजबूत है। वह कहते हैं, ‘मेरा सपना है कि मैं इस नदी को फिर से संवरते हुए देखूं।’

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