सोशल मीडिया बन रहा नक्सलियों का नया हथियार

अब तक पैम्पलेट्स, चिट्ठी और प्रेस रिलीज़ के जरिए संवाद करने वाले नक्सली सोशल मीडिया पर उतर आए हैं। व्हॉट्सऐप (WhatsApp) उनका नया औज़ार बन गया है।

Social Media

नफरत की आड़ लेकर लूट-पाट और हिंसा को अंजाम देने वाले नक्सलियों का एक नया चेहरा सामने आया है। अब तक मोबाइल टॉवरों समेत विकास की तमाम योजनाओं में अड़ंगा लगाने वाले नक्सली अब खुद इन्हीं विकास कार्यों का इस्मेताल कर अपने प्रोपेगेंडा को फैला रहे हैं। जी, अब तक पैम्पलेट्स, चिट्ठी और प्रेस रिलीज़ के जरिए संवाद करने वाले नक्सली सोशल मीडिया (Social Media) पर उतर आए हैं। वॉट्सऐप (WhatsApp) उनका नया औज़ार बन गया है। नक्सलियों द्वारा शुरू किए गए इस नए ट्रेंड की तस्दीक आला पुलिस और CRPF अधिकारियों ने भी की है।

मामला क्या है?

नक्सली विकास का एक चार मिनट का ऑडियो क्लिप जारी हुआ है। इसे वॉट्सऐप के जरिए फैलाया जा रहा है। दरअसल, बस्तर के सुकमा के चिन्तालनार में सीआरपीएफ के कोबरा बटालियन और पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी के बीच 26 मार्च को एक मुठभेड़ हुई थी। इस मुठभेड़ में 4 नक्सली मारे गए थे। इस ऑडियो क्लिप में उसी का जिक्र किया गया है। 27 मार्च को रिलीज हुआ ये ऑडियो क्लिप वॉट्सऐप के जरिए बस्तर और आस-पास के इलाकों में खूब सर्कुलेट हो रहा है।

क्या है इस ऑडियो क्लिप में?

यह ऑडियो क्लिप सीपीआई के बस्तर के साउथ डिवीजन कमिटी के मुखिया विकास का है। चार मिनट के इस क्लिप में विकास ने 25 मार्च को सुकमा में सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में मारे गए चार नक्सलियों को लेकर न्यायिक जांच की मांग की है। उन चार नक्सलियों की पहचान कमलू ऊर्फ जगदीश, दूड़ी हिडमा ऊर्फ दुर्गेश, वंजम गुड्डी और मरियम सुधरी के रूप में की गई। इस ऑडियो क्लिप में उसने तमाम बुद्धिजीवियों समेत मीडिया से भी मदद की अपील की है। साथ ही कहा है कि कांग्रेस सरकार का रवैया भी पिछली सरकारों की तरह ही है।

शासन और प्रशासन का नजरिया

नक्सलियों द्वारा सोशल मीडिया (Social Media) के इस्तेमाल को लेकर प्रशासनिक अमला मानता है इसके जरिए उन्हें जरूरी इंटेलिजेंस इनपुट मिल सकते हैं। हालांकि, इसके प्रसार को लेकर चिंतित बस्तर के आईजी विवेकानंद सिन्हा ने सिर्फ सच के माध्यम से लोगों से अपील की है कि नक्सलियों द्वारा फैलाए जा रहे झूठ और फरेब वाली बातों को आगे फैलाने से बचें। उन्होंने बताया, “पहले से ही ऐसे कई पोर्टल और न्यूज साइट हैं जो नक्सलियों की विचारधारा को प्रोपगेट करते हैं।” उन्होंने कहा कि दरअसल नक्सली लोगों को बरगला रहे हैं। उनकी हरकतें खुद उनकी विचारधारा की विरोधाभासी हैं।

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विवेकानंद सिन्हा, आईजी, बस्तर। फाइल फोटो।

विवेकानंद सिन्हा के शब्दों में, “नक्सली अपनी सहूलियत के हिसाब से विचारधारा तय करते हैं। पहले तो खुद ही दूर दराज इलाकों में विकास कार्यों को होने नहीं देते, फिर चाहे सड़क का निर्माण हो, पुलों का निर्माण हो या मोबाइल टावर की स्थापना आदि। फिर उन्हीं संसाधनों का खुद इस्तेमाल भी कर रहे हैं। तो दरअसल वो गरीब आदिवासियों का शोषण कर रहे हैं और अब ये बात गांव वालों को भी समझ आने लगी है। यही वजह है कि अब गांव वाले चाहते हैं कि उनके गांवों में सड़क, स्कूल और अस्पताल जैसी बुनियादी चीजों का निर्माण हो। गांव वालों की इस चेतना के चलते नक्सियों में बौखलाहट है और वे उलटी सीधी हरकतों को अंजाम दे रहे हैं।”

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सच तो यही है कि नक्सली हमेशा से ही किसी भी तरह के विकास कार्य में बाधा डालते रहे हैं। वे क्षेत्र में विकास नहीं होने देना चाहते। नक्सली विकास कार्यों को अवरुद्ध करने, पुल, मोबाइल टॉवर इत्यादि उड़ाने का भरसक प्रयास करते हैं, जो अब सुरक्षाबलों की चौकसी और हौसले की वजह से बहुत मुश्किल हो गया है।

जिन मोबाइल टावरों को नक्सली लगने नहीं देते अब उनका काम भी उसके बिना नहीं चल सकता। अब खुद उन्हें भी उसकी जरूरत है। उस विकास की जरूरत उन्हें भी है, जिसका विरोध वे शुरू से करते आए हैं। आदिवासी इलाकों में जो मोबाइल टावर लगे हैं, उसका लाभ आदिवासियों के साथ-साथ नक्सली खुद भी उठा रहे हैं।    

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गिरधारी नायक, डीजी, एंटी नक्सल ऑपरेशन्स, छत्तीसगढ़। फाइल फोटो।

सिर्फ सच से बात करते हुए छत्तीसगढ़ के एंटी नक्सल ऑपरेशन्स के प्रमुख (DG) गिरधारी नायक ने कहा कि नक्सली लोकतंत्र और देश की जनता के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। दरअसल, उनकी लड़ाई देश के आम आदमी के खिलाफ है। उन्होंने आगे कहा, “नक्सलियों ने हर किस्म के प्रोपगैंडा का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। वो इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर की तरह लड़ाई लड़ रहे हैं। दुनिया में जहां भी गुरिल्ला वॉरफेयर होता है, तो इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर उसका एक प्रमुख अंग बन गया है और ये नक्सली अब उस रास्ते पर चल पड़े हैं।”

वॉट्सऐप पर सर्कुलेट हो रहे अपने ऑडियो क्लिप में दक्षिण बस्तर के संभागीय समिति के प्रमुख विकास ने जिस एनकाउंटर का हवाला दिया है उस पर गिरधारी नायक ने साफ कर दिया कि सुरक्षाबलों की तरफ से कोई गड़बड़ी नहीं हुई। सुरक्षाबलों ने नक्सलियों को देखने के बाद उन्हें घेरा, उन्हें चेतावनी दी और सरेंडर करने के लिए कहा। लेकिन नक्सलियों ने फायरिंग शुरू कर दी। जिसके बाद सुरक्षाबलों को जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी, जिसमें चार नक्सली मारे गए और ढेरों हथियार भी बरामद हुए।

उन्होंने आगे जोड़ा, “नक्सली टोटल वॉरफेयर में विश्वास कर रहे हैं। पहले जमीन पर लड़ रहे थे अब संचार माध्यमों के जरिए भी लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसे में हम लोग उपयुक्त रणनीति बना कर उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे, जिसमें हमारे सुरक्षाबल पूरी तरह सक्षम हैं।”

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प्रशासन के साथ ही नक्सली विकास ने अपनी ऑडियो क्लिप में सरकारों पर निशाना साधा था। उसने कहा कि भूपेश सरकार भी रमन सिंह के रास्ते ही चल रही है। इस पर बीबीसी के पूर्व पत्रकार और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा का कहना है, “हमने (छत्तीसगढ़ सरकार) सभी स्टेक होल्डर से बात करने का फैसला किया है। उसके बाद बैठकर एक समग्र नक्सल पॉलिसी बनाएंगे।” साथ ही उन्होंने ये भी साफ कर दिया कि सभी स्टेक होल्डर में नक्सली कतई शामिल नहीं हैं। उन्होंने कहा, “आदिवासियों की एक शिकायत थी कि कई निर्दोष आदिवासी जेलों में अरसे से बंद हैं तो इसके लिए सरकार ने रिटायर्ड जस्टिस पटनायक की अगुवाई में एक समिति बना दी है, जो ऐसे सभी मामलों की जांच करेगी। हमारा (भूपेश बघेल सरकार) पूरा प्रयास रहेगा कि सुरक्षाबल अपना काम करते रहें लेकिन हम अपने विकास के एजेंडे पर ही चलते रहेंगे।”

मतलब साफ है कि भोले-भाले आदिवासियों को ढाल बना कर अपना धंधा चला रहे नक्सली अब जमीनी लड़ाई में पिछड़ने लगे हैं। उन्हें समझ आ गया है कि परंपरागत तरीके से वो मैदान में टिक नहीं सकते, इसीलिए सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने लगे हैं। ऐसे में शासन और प्रशासन की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। अब तक उन्हें विकास और सुरक्षा जैसे दो अहम मोर्चों पर कार्य करना पड़ रहा था लेकिन नक्सलियों ने तीसरा मोर्चा भी खोल दिया है। लिहाजा, इस मोर्चे पर भी प्रशासन को मुस्तैदी से जवाब देना पड़ेगा।

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