आत्म-सम्मान की खातिर इस खूंखार नक्सल कपल ने किया सरेंडर

मधि का कहना है कि हम कई महीनों से आत्मसमर्पण करना चाहते थे। लेकिन इसके लिए हमें सही मौके की तलाश थी। हमने अपने साथियों से कहा कि हम कुछ दिनों के लिए गांव जा रहे हैं। चूंकि हम लंबे समय से संगठन से जुड़े हुए थे, इसलिए किसी को भी हम पर शक नहीं हुआ। 

Naxal Couple

ओडिशा के नक्सल-प्रभावित मलकानगिरी जिले में एक पुल प्रॉजेक्ट की वजह से एक मोस्ट वॉन्टेड युवा माओवादी जोड़ा  (Naxal Couple) मुख्यधारा की ओर मुड़ गया। जंतापाई में ब्रिज की सुरक्षा के लिए बनाए गए कैंप और इसके उद्घाटन से पहले बढ़ता कॉम्बिंग ऑपरेशन 26 साल के वागा उर्ममि और उसकी पत्नी मुड़े मधि के हथियार छोड़ने का बहाना बना।

हथियार छोड़ने से पहले उर्ममि उर्फ मुकेश और मधि उर्फ मेसी दोनों मोस्ट वॉन्टेड नक्सली थे। दोनों पर 5 लाख रुपये का इनाम था। पुलिस को करीब 26 मामलों में उर्ममि की तलाश थी। इनमें से 7 हत्या और हत्या की कोशिश के मामले थे। उर्ममि की पत्नी भी 15 मामलों में वांटेड थी। इनमें से 8 हत्या के मामले थे। अब वे दोनों माओवादी कैंप के बाहर जिंदगी संवारने में लगे हैं।

उर्ममि सीपीआई (माओवादी) की मलकानगिरी-कोरापुट-विशाखापत्तनम बॉर्डर (एमकेवीबी) कमिटी की एरिया कमिटी का मेंबर रह चुका है। उसने 2008 में माओवाद की राह पर कदम रखा था। उन दिनों को याद करते हुए उर्ममि ने बताया कि माओवादी हमारे गांव मरिगेट्टा में आते रहते थे। उनके कहने पर मैंने सीपीआई (माओवादी) जॉइन कर ली।

उर्ममि एक किसान परिवार से है। चार भाइयों और दो बहनों में वह दूसरे नंबर का है। वह महज 16 साल का था, जब उसने कलिमेला लोकल गुरिल्ला स्क्वॉड (एलजीएस) को जॉइन किया। वह कभी स्कूल नहीं गया। उसने बताया कि जंगल में जिंदगी काफी तकलीफदेह थी। मैंने अपनी जिंदगी के 10 साल इस गलतफहमी में बीता दिए कि मैं गरीबों के लिए काम कर रहा हूं।

उर्ममि ने कलिमेला कैंप में उड़िया भाषा सीखी। कलिमेला एलजीएस में वह करीब 8 साल रहा। वह बताता है कि माओवादियों की कोई विचारधारा नहीं है। कैंप का जीवन बहुत कठिन था। हमें सुबह 4 बजे उठना होता था। किसी भी जगह पर हम एक दिन से ज्यादा नहीं ठहरते थे। माओवादियों ने हमारा वक्त गांव और जंगल के बीच बांट दिया था। डर के मारे गांववाले हमें भोजन या शरण देने से इनकार नहीं कर सकते थे।

2016 में उर्ममि को एमकेवीबी कमिटी में भेज दिया गया। गुरिल्ला के रूप में अनुभव बढ़ने के साथ ही माओवादियों के बीच भी उर्ममि का कद ऊंचा हो रहा था। उसे एरिया कमिटी मेंबर बना दिया गया। जंगल में इस कठिन जिंदगी के दौरान उसे एक साथी के रूप में माओवादी फाइटर मधि मिली। मधि से उसकी दोस्ती जल्द ही प्यार में बदल गई।

उर्ममि, मधि को कलिमेला के समय से जानता था। जुलाई 2017 में जब मधि का ट्रांसफर एमकेवीबी कमिटी में हुआ, तो दोनों एक-दूसरे के करीब आए। मधि और उर्ममि एमकेवीबी कमिटी में साथ थे। दोनों को प्यार हो गया और मधि ने  उर्ममि के शादी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। मधि केवल 15 वर्ष की थी जब उसने नक्सनी संगठन जॉइन कर लिया था। गांववालों के बीच माओवादी विचारधारा को फैलाने में मधि अहम भूमिका निभाती थी।

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24 अक्टूबर 2016 को रमागुड़ा मुठभेड़ के बाद माओवादियों के लिए हालात बदल गए। इस एनकाउंटर में 30 माओवादी मारे गए थे। मधि ने बताया कि पूरा संगठन इस घटना के बाद हतोत्साहित हो गया था। नियमित आय का न होना भी उनके सरेंडर की एक वजह बना।

उर्ममि का कहना है कि हमें कभी काम के लिए पैसा नहीं दिया जाता था। गांव में मीटिंग कराने के लिए 1 से 2 हजार रुपये मिल जाते थे। मधि ने बताया कि पार्टी की कोई विचारधारा नहीं बची थी। लिहाजा हमने जंगल के जीवन को छोड़ने का फैसला किया।

मधि का कहना है कि हम कई महीनों से आत्मसमर्पण करना चाहते थे। लेकिन इसके लिए हमें सही मौके की तलाश थी। हमने अपने साथियों से कहा कि हम कुछ दिनों के लिए गांव जा रहे हैं। चूंकि हम लंबे समय से संगठन से जुड़े हुए थे, इसलिए किसी को भी हम पर शक नहीं हुआ। हम आत्मसम्मान और इज्जत के साथ दोबारा जिंदगी जीने का मौका चाहते थे, इसलिए मुख्यधारा में शामिल होने का निर्णय लिया।

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